Source text in English |
The winning entry has been announced in this pair.There were 3 entries submitted in this pair during the submission phase. The winning entry was determined based on finals round voting by peers.Competition in this pair is now closed. |
उतरता प्रभात रविवार का 3.25 (3) हां, रविवार सुबह मैं जागा, कि सिर में चुभें काँटें और नाश्ते के लिए जाम नहीं था बुरा, सो, एक और प्याला भरा, मुंह मीठा करने को। और फ़िर, आलमारी में कपडो़ं से उलझते हुए मिल ही गयी मेरी सबसे साफ़ मैली कमीज। मैंने अपना चेहरा चमकाया, बाल बनाये और घर की सीढि़यां फलाँग चला दिन से मिलने। बीती रात, ज़हन भर लिया था, सिगरेट के धुएं और गीतों से जिन्हें मैंने बीते दिनों इकड्ठा किया था। सुबह की पहली सिगरेट जलाते हुए मेरी नज़रों में आया एक छोटा बच्चा, जो खेल रहा था अपना डिब्बा पैरों से उछालकर। और फिर मैं चल पडा़ राह पर , फ़ुरसत के पलों में किसीके मुर्गा तलने की खुशबू ने मुझे जकड़ लिया। ईश्वर! ये मुझे ले गयी उस राह पर, जहां मैं काफ़ी पहले, जाने कैसे, जाने क्यों, कुछ खो आया था। हे ईश्वर, रविवार को एक ऐसी ही डगर में मुझे लगताहै ऐसा कि हूं मै नशे में। कुछ ऐसा अजब है रविवार में जो अकेला कर देता है हमें । और मौत के एहसास से कम नहीं, शहर की सोई गलियों में पसरा अकेलेपन का ये संघात, और उतरता रविवार का प्रभात। पार्क में देखा मैंने एक पिता को, अपनी खिलखिलाती हुई बेटी को झुलाते। एक पाठशाला के पास रुका मैं , और छात्रों के गीत सुने। और फ़िर मैं चल दिया डगर पर, दूर कहीं,दूर कहीं घूँजती थी एक घंटी, आवाज़ उसकी विलीन हो रही थी घाटी में। जैसे गायब होते जाते हों कल के सपने। | Entry #14740 — Discuss ![]() ![]()
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रवि-वार की उषा आ रही हाँ,मैं रवि-वार सुबह उठ जागा पर कोईं ऐसी स्थिती ना थी जो सर दुखने से रोके. बुरी नहीं थी मदिरा जो प्रातः आहार में ली थी रात्रि भोज के मीठे में एक बार और वो ले ली फिर अलमारी में रखे वस्त्रों के बीच टटोला सबसे स्वच्छ गंदा कुर्ता ढूँढ कर निकाला मुँह धो कर और बाल संवार सीढ़ी से नीचे फिसला उस दिन के स्वागत को. पूर्व रात्रि को मैंने था मन धुँए में उड़ाया वोह सिगरेट और गीत जो चुनता रहा मैं पर ज्यों मैंने पहली जलाई और नन्हे बालक को देखा वो मग्न था खाली डब्बे को लतिया कर खेलने में सड़क पार कर के ज्यों आगे बढ़ा मैं तृप्त हुआ तलते हुए मुर्गे की रविवारिय सुगंध में और हे देव, वो ले गयी मुझे उस के पास जो मैंने खोया था कभी कहीं बहुत समय पूर्व. रवि-वार की सुबह फुट-पाथ पर योँ चल कर मैं मांग्ता हूँ देव मुझे कोईं पत्थर मारे क्योंकि रवि-वार की सुबह में वोह सब कुछ है जो तन को दिलाता है अकेलेपन का एहसास और वो मृत्यु से कम नहीं और उस का एहसास उतना भी अकेला नहीं जितना सोते हुए शहर का फुट-पाथ और अवतरित होती रविवारिय सुबह. उद्यान में एक पिता को देखा एक नन्हीं हँसती बाला के संग जिसे वह् झुलाता था एक रविवारीय विद्यालय के पास रुक कर सुना वो गीत जो उन के स्वर से उठता, तेज़ी से फिर राह् पकड़ ली दूर् कहीं एक विरही घंट का नाद था उठता योँ प्रतिध्वनित होता वोह घाटी में ज्यों धुंधलाते सपने हों कल के. | Entry #14708 — Discuss ![]()
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रविवार की सुबह आने वाली है खैर, मैं रविवार सुबह उठा सिर पकड़ने के अलावे कोई चारा ना था, जो कि अनाहत था. और बियर जिससे मैंने नाश्ता किया था वो अच्छा था, अस्तु मेरे पास डेजर्ट के लिए एक बियर और था. तब मैंने अलमारी में कपड़े ढूँढे और मुझे साफ़ गंदा शर्ट मिला. मैंने अपना मुँह धोया और कंघी की और दिन से मिलने सीढ़ियों पे जा गिरा. पिछली रात को मैंने दिमाग कि दही कर डाला सिगरेटों और गानों से जिसे मैं संजोता रहा हूँ परन्तु पहले को सुलगाया और एक नन्हा बच्चा को देखा वह् टिन की बर्तन को ठोकर मार मार कर खेल रहा था तत्पश्चात मैं सड़क के उस पार गया रविवार कि खुशबू, कोई जो चिकेन फ्राई कर रहा था, पकड़ में आई. हे भगवन् ! यह मुझे बीते दिनों कीं याद दिला गयी जिसे में भूल चुका था कहीं, किसी रास्ते में . एक रविवार कीं सुबह पगडंडी पर, चाहता हूँ, काश ! मैं नशे में चूर होता. क्योंकि रविवार में ऐसा कोई विशेष है करता मानव अनुभव तन्हा शेष है. और मरने से कुछ कम नहीँ वह् अधमरा तन्हाई की तरह जैसे पगडंडी पर सोते शहर की आवाज़ की तरह और रविवार कि सुबह आने वाली है. पार्क में मैंने एक पिता देखा हँसती नन्हीं बेटी के साथ वह् झूल रहा था. और मैं एक रविवारसीय स्कूल के पास ठहरा गाने सुनें जिसे वे गा रहे थे. तब मैंने सड़क का रुख किया और कहीं, दूर् जा कर अकेली घंटी बज रही थी, जो कि घाटी में गूँज गयी कल के विलुप्त होते सपने कि तरह. | Entry #14876 — Discuss ![]()
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